जिनकी बांहों में दम तोड़ा, उन्होंने बताए कलाम के आखिरी शब्द

दोपहर तीन बजे हम दिल्ली से गुवाहाटी पहुंचे। वहां से कार से शिलांग के लिए निकले। ढाई घंटे लगे पहुंचने में। आमतौर पर कलाम कार में सो जाया करते थे। लेकिन इस बार बातें करते रहे। शिलांग में खाना खाकर हम आईआईएम पहुंचे। वे लेक्चर देने स्टेज पर गए। मैं पीछे ही खड़ा था। उन्होंने मुझसे पूछा- ऑल फिट? मैंने कहा- जी साहब।
 kalam
दो सेंटेंस ही बोले होंगे कि गिर पड़े। मैंने ही उन्हें बांहों में उठाया। उन्हें हॉस्पिटल ले आए। पर बचा नहीं सके। साहब हमेशा कहते थे कि मैं टीचर के रूप में ही याद किया जाना चाहता हूं। और पढ़ाते-पढ़ाते ही चले गए। उन्होंने आखिरी लाइन कही थी कि धरती को जीने लायक कैसे बनाया जाए? शिलांग के रास्ते में कह रहे थे कि संसद का डेडलॉक कैसे खत्म किया जाए? फिर कहने लगे कि आईआईएम के स्टूडेंट्स से ही पूछूंगा।

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