जम्मू-कश्मीर के पुलवामा जिले में 14 फरवरी को सीआरपीएफ के काफिले में आतंकी हमला हुआ था उस हमले में 44 जवानों की जानें चली गईं थीं। इस आतंकी हमले के बाद पूरे देश में आक्रोश का माहौल बन चुका है आम आदमी से लेकर बड़ी हस्तिायों ने इस पर कड़ी निंदा की है। इसी बीच खबर आ रही है कि जब तक सरकार और सेना पुलवामा में शहीद हुए जवानों का बदला नहीं ले लेती, तब तक मैं अपनी मांग में सिंदूर नहीं लगाऊंगी।
यह बात एक जवान की पत्नी ने किया है। पूरा देश जवानों की शहादत से जहां दुखी है तो वहीं देश की सुरक्षा में तैनात जवानों और सैनिकों के परिवार वाले से दुखद घटना से बहुत दुखी हैं। पुलवामा आतंकी हमले के बाद सैनिकों के परिवार वाले चाहते हैं कि उनसे जवानों की शहादत का बदला लिया जाए। बीते रविवार को शहीद स्मारक पर शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए कार्यक्रम आयोजित किया गया था जिसमें सैनिकों के परिवार वालों का दुख खुलकर सामने आया था।
सरकार से पूनम ने की मांग…..
इस कार्यक्रम में सैनिकों के परिवार वाले और बाकी सामाजिक संस्थाओं के लोगों आए थे। इस कार्यक्रम में भटनागर कॉलोनी में रहने वाली डीएवी स्कूल की अध्यापिका पूनम
इस समय उनके पति की पोस्टिंग जम्मू में हुई है। इस कार्यक्रम के दौरान पूनम ने देश के गद्दारों की खत्म करने की मांग की है। पूनम ने इस मामले पर बात करते हुए कहा कि आज सैनिकों पर जो हमले हो रहे हैं, उनमें सबसे ज्यादा दोष देश में पल रहे गद्दारों का है। देश में जो आतंकी बैठे हैं, सरकार को पहले उनका सफाया करना चाहिए।ने भी हिस्सा लिया था। पूनम डीएवी स्कूल की अध्यापिका है और उनके पति प्रदीप सीआरपीएफ के जवान हैं
पूनम ने कहा कि आतंकवादियों में इतनी हिम्मत नहीं की वे सैनिकों पर हमला कर सकें। यह हमले देश में बैठे गद्दार करवा रहे हैं। पूनम ने इस घटना से दुखी होकर कहा कि जब तक शहीदों की मौत का बदला नहीं लिया जाता, तब तक सिंदूर नहीं पहनने की कसम लेती हूं। इस बीच पूनम ने अपना पत्नी धर्म निभाते हुए सैनिकों के लिए कविता भी लिखी।
पूनम ने इस कविता में लिखा कि, मैं एक फौजी की पत्नी हूं, सोचती हूं किनारा कर लूं, देश को देश देख ले, अपने जीने का सहारा कर लूं, न कभी डरी हूं न कभी डरूंगी, जब तक शहीदों की मौतों का बदला नहीं ले लेते अपनी मांग में सिंदूर नहीं सजाऊंगी।
यह कविता लिखी जवानों के लिए
फौजी की पत्नी हूं, सोचती हूं किनारा कर लूं।
देश को देश देख ले, मैं अपनी जीने का सहारा कर लूं।
ना ना ना ना इतना बड़ा बलिदान ना दे पाऊंगी।
दो वक्त की रोटी के बदले पति की जान ना दे पाऊंगी।
फौजी की पत्नी हूं, नहीं यह गर्व मनाना है।
मुझे तो पिया संग दीपावली का पर्व मनाना है।
कंपकंपाते हाथों से मांग नहीं सजाना चाहती हूं।
मैं तो पति संग बीमार बच्ची को डॉक्टर के पास ले जाना चाहती हूं।
बूढ़े मां-बाप को अकेले कमरे में रोते नहीं देखना है।
मुझे तो अपनी बच्चियों के पास उनके पापा को सोते देखना है।
न कवयित्री हूं, न लेखिका न साहित्यकार हूं।
फौजी की पत्नी हूं भाव विह्वल हूं, आक्रोशित हूं, लाचार हूं।
शब्द नहीं मिल रहे थे अंतर्मन को व्यक्त करने के लिए।
किंतु शायद इतने ही काफी हैं रगों में बहते पानी को रक्त करने के लिए।
बच्चों के चेहरे देखती हूं तो सिहर जाती हूं।
पापा कब आएंगे के जवाब में केवल गर्दन हिलाती हूं।
माना अंदर से मजबूत हूं, पर इतना बड़ा जिगर नहीं पति को टुकड़ों में समेट लूं।
इतनी निडर नहीं, दहशत के साये में और नहीं जी पाऊंगी।
हमारे हैं, वह बस हमारे सरहद से छीन लाऊंगी।
पर इससे पहले एक कसम खाऊंगी।
जब तक वह इन 47 मौतों का बदला नहीं ले लेते।
अपनी मांग में सिंदूर नहीं सजाऊंगी, सिंदूर नहीं सजाऊंगी।
फौजी की पत्नी हूं चाह कर भी किनारा न कर पाऊंगी।
इतनी लाशों का बोझ उठाकर पति संग दिवाली कैसे मना पाऊंगी।